इतिहासकारों का मानना हैं कि सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदंड है। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से सम्बंधित हैं या जुड़ा हुआ माना गया हैं। जिसे न्यायपूर्ण शासन के लिए उम्मीद के रूप में समझा या जाना जाता हैं।
भारत देश आजाद होने के बाद 14 अगस्त 1947 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे भारत गणराज्य के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया था। इसे बाद में इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था। सेंगोल सोने और चांदी से बना है और इसके ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं।
नई संसद में सेंगोल का क्या संदेश है?
‘सेंगोल’ तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘धार्मिकता’ । शब्द ‘सेनगोल’ संस्कृत के ‘शंकु’ (शंख) से भी आया हो सकता है। सनातन धर्म भारत में शंख को बहुत पवित्र माना जाता है।
शंख का प्रयोग आज भी मंदिरों और घरों में आरती के समय किया जाता है। सत्ता का ‘हस्तांतरण’ के साथ-साथ पवित्रता हेतु संस्कार किया जाना चाहिए जो नए संसद भवन में किया जाएगा।
नए संसद भवन को मिलेगा ‘सेंगोल’ , प्राचीन भारत के समृद्ध वैभव के प्रतीक के रूप में।
इस समय पूरे देश में नए संसद भवन और उसके उद्घाटन को लेकर खूब चर्चा हो रही है। नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के पास राजदंड (सेंगोल) भी लगाया जाएगा।
इस सम्बंध में देश के गृह मंत्री अमित शाह ने भी सेंगोल को देश की समृद्ध सभ्यता का प्रतीक बताते हुए एक ट्वीट किया था। लेकिन क्या आप जानते हैं सेंगोल का असली इतिहास नीचे पढ़ें और भारतीय परंपरा को जानें।
सेंगोल का इतिहास।
चोल काल के दौरान, सत्ता के हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक समान राजदंड याने सेंगोल का उपयोग किया गया था। उस जमाने में या कहे पुराने समय में तत्कालीन राजा द्वारा नये चुने हुये राजा को सेंगोल देते हुये सत्ता को सौंप दिया जाता था। राजदंड सौंपने के दौरान, 7वीं शताब्दी के तमिल संत थिरुग्नाना सम्बंदर द्वारा रचित एक विशेष गीत भी गाया गया था।
कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल के इस्तेमाल की ओर इशारा करते हैं और सेंगोल के उपयोग की इतिहास को इंगित करते हैं। इस कड़ी को आगे लेकर चलते हैं और पाते हैं कि
वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक प्रश्न किया: “ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए किस समारोह का पालन किया जाना चाहिए?”
इस सवाल पर नेहरू को सी. राजगोपालाचारी (राजाजी) जो स्वतंत्रता सेनानी थे और नेहरू जी के करीबी भी थे उनको सत्ता के हस्तांतरण पर परामर्श करने के लिए प्रेरित किया। राजाजी ने चोल काल के समारोह का प्रस्ताव रखा जहाँ एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण महायाजकों की उपस्थिति में गंभीरता और आशीर्वाद के साथ किया जाता था।
राजाजी ने तमिलनाडु के तंजौर जिले में शैव धर्म के एक धार्मिक मठ थिरुवदुथुराई अधनम से संपर्क किया। थिरुवदुथुराई अधीनम 500 साल से अधिक पुराना है और पूरे तमिलनाडु में 50 शाखा मठों का संचालन करता है। अधिनाम के नेता ने तुरंत चेन्नई में सुनार वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को पांच फीट लंबाई का एक ‘सेंगोल’ तैयार करने के लिए कहा गया।
क्या है सेंगोल जिसे मोदी सरकार नए संसद भवन में लगाएगी?
नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ, शुरू होने वाली कुछ नई परंपराओं में सेंगोल की स्थापना शामिल है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधिनाम (मठ) से सेंगोल को स्वीकार करेंगे और इसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित करेंगे।
अमित शाह का यह भी कहना है कि नेहरू ने इसे अंग्रेजों से भारत में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को दिल्ली में संसद के नए भवन का उदघाटन करेंगे।